जानें शनि की अदभुद कथा जिसने उन्हें बनाया सर्वोच्च ग्रह
शनि की शक्ति से कौन परिचित नहीं है पर सर्वप्रथम इसका अहसास कैसे हुआ इसी के बारे में बताती है ये अनोखी शनि कथा।
श्रेष्ठता के लिए ग्रहों में विवाद
एक पौराणिक कथाओं के अनुसार बताते हैं कि एक बार सभी नवग्रहों सूर्य, चंद्र, मंगल, बुद्ध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु में विवाद छिड़ गया, कि इनमें सबसे बड़ा कौन है। सभी का दावा था कि वही सर्वोत्तम हैं। जब वे आपस में निर्णय नहीं कर सके तो देवराज इंद्र के दरबार में उनसे इस पर फैसला देने के लिए कहा। इंद्र इस स्थिति से डर गए और उन्होंने कहा कि वे इस पर फैसला लेने में सक्षम नहीं है। साथ ही उन्होंने उस समय पृथ्वी पर राज कर रहे राजा विक्रमादित्य की योग्यता और न्यायप्रियता का जिक्र करते हुए उनकी सलाह लेने के लिए कहा। इस पर सभी ग्रह राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे, और उन्हें अपना विवाद बताते हुए निर्णय के लिये कहा। ग्रहों की बात सुन कर राजा काफी चिंतित हो उठे, क्योंकि वे जानते थे, कि जिस किसी को भी छोटा बताया, वही रुष्ट हो जायेगा। अब राजा ने युक्ति निकाली, उन्होंने स्वर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से नौ सिंहासन बनवाये, और उन्हें इसी क्रम से रख दिया। इसके बाद सभी ग्रहों से निवेदन किया, कि वे सिंहासन पर स्थान ग्रहण करें, जो अंतिम सिंहासन पर बैठेगा, वही सबसे छोटा होगा।
शनि हुए रुष्ट
सारे ग्रहों ने अपना स्थान ग्रहण किया जिसमें लौह सिंहासन सबसे आखीर में था जिस पर शनिदेव सबसे बाद में बैठे, और वही सबसे छोटे कहलाये। इस पर शनि कुपित हो गए उन्हें लगा कि राजा ने यह जान बूझ कर किया है। तब शनि ने गुस्से में राजा से कहा कि वो उन्हें नहीं जानते, जैसे सूर्य एक राशि में एक महीना, चंद्रमा सवा दो महीना दो दिन, मंगल डेढ़ महीना, बृहस्पति तेरह महीने, बुद्ध और शुक्र एक एक महीने विचरण करते हैं, वैसे ही शनि ढाई से साढ़े-सात साल तक एक राशि में रहते हैं। जिसके चलते बड़े बड़ों का विनाश हो जाता है। शनि ने कहा कि ये शनि की साढ़े साती ही थी जिसने श्री राम को चौदह वर्ष का बनवास कराया और जब रावण जैसे महावीर पर आई तो मामुली बानर सेना ने लंका पर विजय प्राप्त कर उसका अंत करवा दिया। इसके बाद राजा को सावधान रहने को कहकर शनिदेव गुस्से में वहां से चले गए।
साढ़े साती का प्रभाव
कुछ समय बाद राजा पर शनि साढ़े साती आयी, और शनि देव घोड़ों के सौदागर बनकर उनके राज्य में कई बढ़िया घोड़े लेकर आये। राजा ने यह समाचार सुन कर अपने अश्वपाल को अच्छे घोड़े खरीदने की अज्ञा दी। उसने कई अच्छे घोड़े खरीदे। इन्हीं में से एक श्रेष्ठ घोड़े पर राजा सवारी करने निकले, परंतु जैसे वो उसपर सवार हुए घोड़ा सरपट वन की ओर भागा और भीषण वन में राजा को गिरा कर वहां से भाग गया। भूखा प्यासा राजा उस जंगल भटकने लगा। तब एक ग्वाले ने दया करके उसे पानी पिलाया। राजा ने प्रसन्न हो कर उसे अपनी अंगूठी दे दी। इसके बाद वो एक सेठ की दुकान में उज्जैन पहुंचा और अपना नाम बताया वीका। सेठ की दूकान उन्होंने जल पीकर कुछ देर विश्राम किया, भाग्य से उस दिन सेठ जी की सूब कमाई हुई। सेठ ने समझा कि वीका उसके लिए भाग्यशाली है वह उसे खाना खिलाने अपने साथ घर ले गया। जहां खूंटी पर एक हार टंगा था। अनायास सेठ को अनोखा दृश्य दिखा कि हार को खूंटी निगल रही है, और देखते देखते पूरा हार गायब, ये देख कर सेठ घबरा गया और उसे वीका की कारस्तानी समझ कर कोतवाल से कह कर ना सिर्फ जेल भिजवाया बल्कि हाथ पांव भी कटवा दिए। के और नगर के बहर फिंकवा दिया। राजा अपनी इस दुदर्शा पर हैरान था।
समझा शनि का प्रभाव
जहां वीका गिरा था वहां से गुजर रहे एक तेली को उस पर दया आ गई और उसने अपनी बैलगाड़ी में उसे चढ़ा लिया। वीका बना राजा अपनी जीभ से बैलों को हांकते हुए गाड़ी चलाने लगा। उसी काल में राजा की शनि दशा समाप्त हो गयी, और वो वर्षा के स्वागत के लिए मल्हार गाने लगा। इस गीत को नगर की राजकुमारी ने सुना और उस पर मोहित हो गई। उसने मन ही मन प्रण कर लिया, कि वह गायक से ही विवाह करेगी। पता लगवाने पर राजा कि स्थिति के बारे में पता चला परंतु सबके समझाने के बावजूद राजकुमारी का निश्चय नहीं बदला और उसने उसी अपंग गायक से शादी करने का निर्णय कर लिया। अतत दोनों का विवाह हो गया।तब शनि देव ने राजा को स्वप्न में दर्शन दे कर कहा कि देखा मुझे छोटा बताने का नतीजा। तब राजा ने उनसे क्षमा मांगी और अनुरोध किया कि ऐसा कष्ट किसी को भी ना दें। तब शनिदेव ने का जो उनका व्रत करेगा और कथा कहेगा, उसे शनि की दशा में कोई दुःख और कष्ट नहीं होगा, उसके सारे मनोरथ पूर्ण होंगे। साथ ही राजा को हाथ पैर भी वापस दिये।
शनि बने सर्वोच्च
सुबह राजकुमारी अपने पति को एकदम ठीक देख कर हैरान रह गई तब राजा ने उसे अपना असली परिचय देते हुए बताया कि वह उज्जैन का राजा विक्रमादित्य है। जब सेठ ने यह सब सुना तो वह राजा से क्षमा मांगने लगा, इस पर राजा ने कहा, कि वह तो शनिदेव का कोप था। इसमें किसी का कोई दोष नहीं। सेठ ने कहा कि उसे शांति तब ही मिलेगी जब वे उसके घर चलकर भोजन करेंगे। राजा गया तो सेठ ने देखा की खूंटी ने हार वापस निकल दिया है। सेठ ने अपनी कन्या का विवाह भी राजा से कर दिया। इसके बाद अपनी दोनों पत्नियों के साथ राजा उज्जैन नगरी आये जहां नगरवासियों ने उनका भव्य स्वागत किया। नगर आगमन के उत्सव पर राजा ने घोषणा की कि उन्होंने शनि देव को सबसे छोटा बताया था जोकि गलत है असल में वही सर्वोपरि हैं। तबसे सारे राज्य में शनिदेव की पूजा और कथा नियमित होने लगी।
By Molly Seth
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