कैसे होती है मां महालक्ष्मी की उपासना
शुक्रवार को देवी उपासना की जाती है। इसी क्रम आज जानते हैं माता के महालक्ष्मी रूप की पूजा के बारे में।
मां लक्ष्मी का स्वरूप हैं माता
महालक्ष्मी माता लक्ष्मी का ही एक रूप हैं। वैसे तो प्रत्येक शुक्रवार को देवी की पूजा की जाती है, परंतु माता के महालक्ष्मी स्वरूप की पूजा के लिए हिंदू धर्म में कुछ विशेष अवधि होती है। कहते हैं कि देवशयनी एकादशी के बाद जब भगवान विष्णु चार माह के लिये विश्राम पर चले जाते हैं, तो इस दौरान माता लक्ष्मी ही पूरा संसार चलाती है। इसी अवधि में भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से लेकर आश्विन कृष्ण अष्टमी तक वे धरती पर निवास करती हैं। इन 16 दिनों में माता महालक्ष्मी की पूजा होती है। पूजा का आरंभ में हल्दी से रंगे 16 गांठ का रक्षासूत्र को हाथ में बांधना होता है, और आखिरी दिन की पूजा के बाद इसे किसी नदी या सरोवर में विसर्जित कर दिया जाता है। 16वें दिन इस पूजा का उद्यापन किया जाता है।
ऐसे में करें महालक्ष्मी पूजा
मां महालक्ष्मी की पूजा के लिए पहले पवित्र मिट्टी की मूर्ति चौक पर स्थापित करें। इसके बाद उनको लाल, गुलाबी या फिर पीले रंग का रेशमी वस्त्र पहनाएं। इस पूजा में देवी को कमल और गुलाब के फूल जरूरी चढ़ाएं, क्योंकि ये माता को अत्यंत प्रिय हैं। महालक्ष्मी की पूजा में पान, सुपारी, लौंग, इलायची, रोली, कुमकुम, धूप, कपूर और अगरबत्तियों का प्रयोग अनिवार्य है। साथ ही दुर्वा, चंदन और सिंदूर रखना भी न भूलें। सामर्थ्य के अनुसार पूजा में सोने या चांदी का कोई एक आभूषण भी शामिल कर सकते हैं।
माता के आठ नामों का जाप
महालक्ष्मी की पूजा में माता के इन आठ नामों का जप करना अति उत्तम माना जाता है। ऊं आद्यलक्ष्म्यै नम:, ऊं विद्यालक्ष्म्यै नम:, ऊं सौभाग्यलक्ष्म्यै नम:, ऊं अमृतलक्ष्म्यै नम:, ऊं कामलक्ष्म्यै नम:, ऊं सत्यलक्ष्म्यै नम:, ऊं भोगलक्ष्म्यै नम:, ऊं योगलक्ष्म्यै नम:। शास्त्रों की मानें तो इस व्रत का जिक्र महाभारत काल में भी मिलता है जब माता कुंती तथा गांधारी को व्यास जी ने इसकी जानकारी दी थी। मां महालक्ष्मी के बारे में कहते हैं कि वे अपने भक्तों की समस्त मनोकामना पूरी करती हैं।
ऐसे करें उद्यापन
मां महालक्ष्मी व्रत का उद्यापन इस प्रकार करें। इसमें मां महालक्ष्मी को प्रिय चीजें शामिल होनी चाहिए। महालक्ष्मी व्रत के उद्यापन में 16 वस्तुओं का दान करना शुभ माना जाता है। इसमें 16 चुनरी, 16 बिंदी, 16 शीशा, 16 डिब्बी सिंदूर, 16 कंघा, 16 रिबन, 16 नाक की नथ, 16 पुड़िया रंग, 16 फल, 16 बिछिया, 16 मिठाई, 16 रुमाल, 16 मेवा, 16 लौंग, 16 इलायची, 16 पुए बनाकर दान किए जाते हैं। अंत में महालक्ष्मी की आरती अवश्य करें।
By Molly Seth
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